Saadi me Fufa ji | Funny Story on Fufa ji in Hindi – दूल्हे का फूफा – हिंदी कहानी

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Saadi me Fufa ji | Funny Story on Fufa ji in Hindi
Saadi me Fufa ji | Funny Story on Fufa ji in Hindi

Saadi me Fufa ji | Funny Story on Fufa ji in Hindi – दूल्हे का फूफा – हिंदी कहानी

Saadi me Fufa ji – दूल्हे का फूफा – हिंदी कहानी: एक शहर में एक परिवार रहता था. परिवार में पिछले कुछ दिनों से खुशियों का माहौल छाया हुआ था, क्योंकि इस घर के इकलौते लड़के का विवाह तय हो चुका था. लड़के का नाम विनोद है और वह सरकारी नौकर बन चुका था. समाज में सरकारी नौकरियों की एक अलग ही शान होती है.

लड़के से जुड़े हर रिश्तेदार को उसकी सफलता पर गर्व था और सभी उसकी शादी को लेकर उत्साहित थे. लड़के के विवाह से संबंधित सभी रस्में एक एक करके मनाई जा रही थी और इसी बीच दूर दूर से नज़दीकी रिश्तेदारों को आमंत्रण भेजा जाता है और यहाँ दूसरी ओर दुल्हन के परिवार में भी विवाह की तैयारियां धूमधाम से की जा रही होती है. दुल्हन के मामाजी रिटायर्ड आर्मी ऑफ़िसर थे और उनके स्वभाव में उनका अक्खड़पन साफ़ दिखाई देता था.

वह अक्सर अपनी बातों से लोगों को नीचा दिखा दिया करते थे. जिस वजह से कई लोग उनके पास बैठना पसंद नहीं करते थे. दुल्हन के परिवार की तरफ़ से सभी रिश्तेदारों को बुलावा भेजा जाता है और मामाजी को विवाह से दो दिन पूर्व ही आने को कहा जाता है, ताकि शादी की सभी तैयारियां समय से करवाई जा सके. सभी यह बात जानते थे, कि मामाजी समय की पाबंद है, लेकिन सख़्त स्वभाव होने की वजह से वह हर एक व्यक्ति से कठोर व्यवहार करते थे और यही सबसे बड़ी चिंता थी, कहीं मामाजी के बर्ताव से कोई नाराज़ न हो जाऐ और कुछ इसी तरीक़े के स्वभाव का दूल्हे का फूफा भी होता है.

शादी का कार्ड मिलते ही दूल्हे का फूफा अपनी पत्नी के साथ शादी के कपड़े ख़रीदने जाता है और एक एक करके कई दुकानों को देखने के बाद भी बिना कपड़े ख़रीदे बाज़ार से वापस आ जाता है और तय करता है कि अगले दिन बड़े शहर जाकर, वह अपने और अपनी पत्नी के लिए कपड़े ख़रीदेगा और वह दूसरे शहर जाता है, लेकिन उसे वहां भी कुछ पसंद नहीं आता और फिर वह अपनी पत्नी से कहता है, कि हम कल कोई और शहर चलेंगे वहाँ ज़रूर हमारे मन के कपड़े मिल जाएंगे।

उसके इस बर्ताव से उसकी पत्नी नाराज़ हो जाती है और कहती है, कि तुम्हारी शादी है क्या, जो इतनी छानबीन करके कपड़े ले रहे हो और चुपचाप यहीं से कपड़े लेकर चलो, नहीं तो मैं शादी में नहीं जाऊँगी और मजबूरीवश उसे वही से कपड़े लेने पड़ते हैं और यहाँ दूसरी ओर दुल्हन के मामा शादी के एक हफ़्ते पहले ही लड़की वालों के यहाँ आ जाते हैं और शादी की तैयरियों का जायज़ा लेने लगते हैं।

तभी अचानक उन्हें पता चलता है, कि अभी तक शादी में खाना बनाने के लिए हलवाई नहीं मिला है और यह बात सुनते ही मामाजी को ग़ुस्सा आ जाता है और वह दुल्हन के पिता जी को खरी खोटी सुना देते हैं और कहते हैं “आपने मुझे पहले क्यों नहीं बताया, मैं हलवाई अपने साथ ही ले आता”। लड़की के पिता जवाब देते हुए कहते हैं, “इस शहर में बहुत सी शादियां है, बड़ी मुश्किल से केवल साज सजावट और बैंड बाजा ही बुक हो पाए हैं”।

मामाजी के अंदर चुनौतियों का सामना करने वाला जज़्बा होता है, इसलिए वह लड़की के पिता से कहते हैं, “आप चिंता न करो, मैं सारा खाना बनवा दूँगा। मैं आर्मी में तीन साल खाने के मैस का इंचार्ज रहा हूँ और मुझे कई लोगों का खाना एक साथ बनवाने का अनुभव है”। लड़की के पिता, मामा जी की बात सुनकर निश्चिंत हो जाते हैं।

यहाँ लड़के का फूफा अपनी पत्नी की नाराज़गी की वजह से कपड़े तो ले लेता है, लेकिन वह मन मैं तय करता है, कि जूते लेने तो मैं अपने मर्ज़ी से दूसरे शहर ही जाऊँगा और वह अपनी पत्नी को बिना बताए, अगले दिन दूसरे शहर निकल जाता है और कुछ दुकानें घूमने के बाद उसे उसके मन के जूते नज़र आ जाते हैं और वह बहुत ही शानदार जूते ख़रीद कर ले आता है और अब विवाह का समय भी आ जाता है।

अगले ही दिन लड़के के घर से बारात निकलने वाली होती है, लेकिन लड़के के फूफा की ट्रेन लेट हो जाती है और वह समय से नहीं पहुँच पाते। मज़बूरी में लड़के वालों को बारात निकालनी ही पढ़ती है और जैसे ही लड़के का फूफा पहुँचता है, बारात निकल चुकी होती है। दरअसल यात्रा के दौरान इनके मोबाइल में नेटवर्क भी नहीं होता, इसलिए वह अपने विलंब की सूचना नहीं दे पाए थे।

लेकिन बारात उन्हें लिए बिना ही चली गई थी और इस बात से वह बहुत नाराज़ हो जाते हैं। लेकिन विवाह में उनका होना अनिवार्य है, क्योंकि कई रस्में उनके साथ जुड़ी हुई थीं। सभी के मनाने पर फूफा बारात जाने को तैयार हो जाते हैं। लड़की वालों का घर यहाँ से दो घंटे की दूरी पर था, वह बस स्टैंड पहुँच जाते हैं और बस में बैठकर निकल जाते हैं। लड़की वालों के यहाँ काफ़ी समय से बारात का इंतज़ार हो रहा होता है और कुछ ही समय में बैंडबाजे की ज़ोरदार आवाज़ के साथ बारात लड़की के मोहल्ले में प्रवेश करती है.

लड़की वालों की तरफ़ से बारात का स्वागत धूमधाम से किया जाता है, लेकिन देरी के चलते कुछ रस्मों को कम समय में ही ख़त्म किया जाता है और बारात को खाने के लिए बुलाया जाता है। बारात में काफ़ी लोग होते हैं और लड़की की तरफ़ से भी कई लोग विवाह में शामिल होने आए होते हैं।

लड़की के मामा खाने की तैयारी में जुटे होते हैं और जैसे ही खाना प्रारंभ होता है। कुछ ही समय में खाने में कमी आ जाती है और कई लोग लाइन लगाकर खड़े हो जाते हैं। खाने में कमी से लड़की के पिता को चिंता हो जाती है और वह मामाजी के पास जाकर कहते हैं। थोड़ा जल्दी करवाइए बाराती लाइन लगाए खड़े हैं। तभी मामा जी अपना रौब दिखाते हुए कहते हैं, “मैं हलवाई नहीं हूँ, उन्हें कहो थोड़ा इंतज़ार करें” और यहाँ बारातियों में खाने के लिए भगदड़ मची होती है.

और इसी बीच दूल्हे का फूफा थका हारा पहुँच जाता है। लेकिन सभी खाने में इतने व्यस्त होते हैं, कि उनकी तरफ़ किसी का ध्यान नहीं जाता और वह मुँह फुलाकर किनारे की कुर्सी में बैठ जाते हैं। तभी वहीं से लड़की के पिता जी गुज़रते हैं और वह उनसे पूछ बैठते हैं, “आप किसकी तरफ़ से आए हैं” लेकिन लड़के के फूफा क्रोध से भरे होते हैं और चिल्लाते हुए कहते हैं, “मैं आसमान से आया हूँ”।

वहाँ खड़े कुछ बाराती, यह बात सुनते हैं और उन्हें देखते ही पहचान जाते हैं, “अरे फूफा जी, आइए आइए नाराज़ मत होइए, चलिए भोजन ग्रहण करिए”। बड़ी मुश्किल से फूफाजी शांत होते हैं और खाने के लिए तैयार हो जाते हैं। लेकिन जैसे ही वह पूरियां लेने पहुँचते हैं, तो वहाँ केवल एक ही पुरि होती है और उसे भी एक बच्चा उठा लेता है। फूफाजी बहुत भूखे होते हैं, इसलिए उन्हें और ग़ुस्सा आ रहा होता है और जैसे ही पुरियां दोबारा रखवाई जाती है।

वह एक साथ आठ दस ले लेते हैं, ताकि उन्हें बार बार इंतज़ार न करना पड़े और इसी बीच लड़की के मामा बाहर आते हैं और फूफाजी की थाली में आवश्यकता से अधिक पुरियाँ देखकर नाराज़ हो जाते हैं और उन्हें कह देते हैं, “इतने बाराती खड़े हैं और आप एक साथ इतनी सारी पुरियाँ लेकर बैठ गए और आती जाएँगी तो लेते जाइएगा।

फूफाजी वैसे ही ग़ुस्से से भरे बैठे थे और यह बात सुनते ही, वह अपनी थाली पटक देते हैं और उनका ऐसा बर्ताव देखकर, वहाँ सभी उन्हें देखने लग जाते है। घराती और बराती दोनों पक्षों के लोग फूफा और मामा को समझाते हैं और दोनों बड़ी मुश्किल से दोनों शांत होते हैं और यहाँ दूल्हा दुल्हन की रस्में चल रही होती है और उसी बीच फूफाजी आकर बैठ जाते हैं और रस्में देखते देखते उनकी आँख लग जाती है और कुछ ही घंटों में सुबह हो जाती है और जैसे ही फूफाजी की नज़र अपने जूतों पर पड़ती है, तो वह जूते ग़ायब होते हैं और कुछ समय ढूंढने के बाद पता चलता है, कि दूल्हे की सालियों ने गलती से फूफा जी के जूते ही चुरा लिए हैं।

दरअसल जूता चुराना एक रस्म है और जब तक दुल्हे की सालियों को कोई न कोई उपहार न मिल जाए, तब तक वह जूते वापस नहीं करेंगी और अब विदाई का समय हो जाता है। फूफाजी बिना जूतों के इंतज़ार में है बैठे होते हैं। दूल्हा विदाई के समय जैसे ही गाड़ी में बैठता है, तो सालियों की नज़र दूल्हे के जूतों पर पड़ती है और उन्हें ताज्जुब होता है।

दूल्हे राजा की जूते तो हमने चुरा लिऐ थे, फिर उन्होंने किसके जूते पहने हुए हैं और थोड़ी ही देर में सालियों को पता चल जाता है, कि यह तो फूफाजी के जूते हैं और सालियां जैसे ही दुल्हे से उपहार माँगने जातीं है, तो वह उन्हें छेड़ते हुए कहता है, “तुम लोगों ने जिसके जूते चुराए हैं, उपहार भी वही देगा” और सालियां फूफाजी से उपहार की ज़िद करने लगती है।

रात भर से फूफाजी, वैसे ही नाराज़ होते हैं और उपहार देने की बात सुनकर बिना जूतों के ही पैदल चलने लगते हैं और उन्हें पैदल जाता देख दुल्हा दुल्हन के परिवार के लोग उनके पीछे उन्हें समझाने के लिए भागने लगते हैं। फूफाजी आगे आगे और बाराती पीछे पीछे पूरा मोहल्ला इस दृश्य को देखकर हँसने के लिए मजबूर हो गया था।

तभी लड़की के पिता ने फूफाजी के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा, “आप तो बड़े हैं, समझदार है, नादानी मैं हमसे कुछ भूल हुई हो तो, हमें क्षमा करें और ये लीजिए अपने जूते” और फूफाजी जल्दी से अपने जूते लेकर पहन लेते हैं। लड़के के पिता जी फूफाजी को दूल्हे की कार में बैठने का प्रस्ताव रखते हैं और उन की यह बात सुनते ही वह लपककर कार के अंदर घुसकर बैठ जाते हैं और इसी के साथ बारात दुल्हन को लेकर रवाना हो जाती है।

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