ओशो – मुल्ला नसरुद्दीन के किस्से । Osho Mulla NashirUddin Story in Hindi

मुल्ला नसरुद्दीन के किस्से । Osho Mulla NashirUddin Story in Hindi: नमस्कार दोस्तों आज के इस पोस्ट में ओशो द्वारा कहा गया एक मजेदार मुल्ला नसरुद्दीन के किस्से लेकर आया हूँ जिसे आप जरुर पसंद करेंगे तो आइये बिना देरी के मुल्ला नसरुद्दीन पर ओशो चुटकुले, OSHO Mulla Nasruddin Funny story कहानी कि शुरुवात करते हैं

मुल्ला नसरुद्दीन के किस्से । Osho Mulla NashirUddin Story in Hindi
मुल्ला नसरुद्दीन के किस्से । Osho Mulla NashirUddin Story in Hindi

ओशो – मुल्ला नसरुद्दीन के किस्से । Osho Mulla NashirUddin Story in Hindi

मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी बहुत मोटी थी। डाक्टरों से सलाह ली। तो डाक्टर ने कहा कि घुड़सवारी ठीक होगी। तो रोज सुबह घुड़सवारी पर जाए। महीने भर बाद नसरुद्दीन को डाक्टर ने पूछा, राह पर मिला; क्या हाल है? क्या खबर? कुछ हुआ?

नसरुद्दीन ने कहा, बेचारी सूख कर कांटा हो गई। डाक्टर ने कहा, मैंने पहले ही का था–प्रसन्न होकर कहा। नसरुद्दीन ने कहा, आप समझे नहीं। पत्नी नहीं, घोड़ी! पत्नी तो और मोटी हो रही है।

घोड़ी को मत सुखा डालना। शरीर घोड़ी है। उसको कितना ही उपवास करवाओ, कुछ हल न होगा। पत्नी तो मुटाती चली जाएगी। वह अहंकार है तुम्हारे भीतर।

तो जिनको तुम त्यागी कहते हो, वे शरीर को मार डालते हैं। कम खाते हैं कम सोते हैं, भूख ताप सहते हैं, लेकिन भीतर का अहंकार बढ़ता जाता है। जितना वजन शरीर में कम होता है उतना वजन अहंकार में बढ़ता जाता है। इसलिए त्यागीत्तपस्वियों से ज्यादा अहंकारी आदमी तुम्हें कहीं भी न मिलेंगे। वे तो अहंकार के शुद्ध शिखर हैं। अगर शुद्ध अहंकार देखना हो, तो त्यागी में।

भोगी में अशुद्ध होता है। वह चमक नहीं होती। क्योंकि भोगी को खुद ही लगता है, गलत कर रहा हूं। इसलिए भोगी थोड़ा सा डरा होता है। भोगी को लगता है, ठीक ही नहीं हो रहा है। इसलिए अहंकार की प्रगाढ़ता से प्रकट नहीं होता। थोड़ा झुका-झुका रहता है। भोगी थोड़ा विनम्र रहता है। क्योंकि अपराध का भाव रहता है।

त्यागी का सब अपराध भाट मिट जाता है। त्यागी अकड़ कर चलता है। त्यागी की पताका उड़ती रहती है। त्यागी भयंकर अहंकार से भर जाता है।

भोगी का भी संसार है, त्यागी का भी संसार है। क्योंकि अहंकार है वहां संसार है।

जिस दिन मैं भाव गिरता है, उसी दिन सब सपने गिर जाते हैं। यह बड़ा संसार सपना है। खुली आंखों का सपना। दो तरह के सपने हैं। एक, जो तुम बंद आंख से देखते हो। वे इतने खतरनाक नहीं क्योंकि रोज सुबह टूट जाते हैं। एक सपना है, खुली आंख का सपना–यह जो विराट तुम्हें चारों तरफ समझ में आता है, यह बड़ा खतरनाक है। क्योंकि जन्मों-जन्मों तुम जन्मते हो, मरते हो और नहीं टूटता। जिसने इसे तोड़ लिया वह परम धन्यभागी है।

यह कैसे टूटेगा? कबीर के ये सूत्र उसके तोड़ने की तरफ इशारे हैं।

अंधे हरि बिन को तेरा।

कबीर कहते हैं, अगर अपना ही मानना हो तो हरि को छोड़कर और किसी को मत मानो।

एक दिन तो हरि भी छूट जाएगा। क्योंकि वह भी खयाल, कि हरि मेरा है, आखिरी सपने का हिस्सा है। लेकिन जो सपने में है जिसको सपने का कांटा लगा है, उसे दूसरे कांटे से निकालने की जरूरत है। दूसरा कांटा उतना ही कांटा है, जितना पहला।

राह तुम चलते हो, कांटा लग गया। तत्क्षण तुम दूसरा बबूल का कांटा उठा लेते हो, पहले कांटे को निकालते हो दूसरे कांटे से। फिर दोनों को फेंक देते हो।

संसार कांटा है; धर्म भी कांटा है। अभी पत्नी मेरी, पति मेरा, बेटा मेरा, मकान मेरा, धन मेरा, इज्जत मेरी, पद मेरा–यह कांटा है। हरि मेरा–यह दूसरा कांटा है, जिससे बाकी सब कांटे निकल जाएंगे। फिर इस दूसरे कांटे को सम्हाल कर घाव में मत रख लेना। नहीं तो तुम मूर्ख साबित हुए, मूढ़ साबित हुए। सब मेहनत व्यर्थ गई। तुमने सब गुड़गोबर कर दिया। दूसरा भी कांटा है। उसकी उपयोगिता थी।

इसलिए पतंजलि ने योग सूत्रों में ईश्वर को भी एक विधि माना है; कि वह भी संसार से मुक्त होने की विधि है। बड़ी हैरानी की बात है। और मनुष्य जाति के इतिहास में इतना स्पष्ट रूप से ईश्वर को विधि कहनेवाला दूसरा व्यक्ति नहीं पैदा हुआ। पतंजलि ने साफ कहा कि यह भी एक विधि है। इस विधि से रोग मिट जाएगा। जब रोग मिट जाए तो औषधि को फेंक देना। औषधि को ढोते मत रहना।

बुद्ध ने कहा है कि तुम नाव से नदी पार करते हो। नाव नदी पार करने के लिए है। फिर जब तुम नदी पार हो जाते हो, नाव को भूल जाते हो। नदी में ही छोड़ जाते हो। उसको फिर सर पर लेकर मत चलना। फिर यह मत कहना गांव में जाकर नगरों में, कि कैसे छोड़े इस नाव को! इसने नदी पार करवाई।

तब तुम मूढ़ हो। तब तो बेहतर था कि तुम नदी ही पार नहीं करते। अब यह और उपद्रव हो गया। उसी किनारे रहते, वह बेहतर था। कम से कम सिर पर नाव का बोझ तो न था। अब तुम यह सिर पर नाव लेकर चल रहे हो।

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