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दिल छु लेने वाली एक कहानी – पाँच बरस पहले | Most Heart Touching Story In Hindi
पाँच बरस पहले: “अच्छा, लिखते हो।” वह बोली।
“शायद”, उसे कोई जवाब न सूझा।
“हम भी पढ़ते हैं, कभी-कभी तुम्हे। जब बेहद अकेले होते हैं” न जाने क्यों उसने बहुत मासूमियत से कहा।
‘लिखते भी तो तुम्हारे लिये ही हैं’ वह बेहद धीरे से बोल पड़ा।
“कुछ कहा तुमने आॅरव!” उसने न जाने क्यों पूछ लिया।
“नहीं तो!”
“ओह, हमें लगा तुमने कुछ कहा” वह चुप हो गयी।
हवा सर्द मौसम में और तीखी हो गयी थी। ऑरव ने एक गहरी साँस ली।
“बस इतना ही!”
दूसरी तरफ से साँसों के शोर के सिवा कुछ और नहीं था।
“भव्या! आज कुछ कहोगी नहीं” ऑरव मुस्कुराया।
“आज कुछ नहीं। अभी रखते हैं, काॅलेज जाना है” भव्या ने कहा।
“अच्छा; हम मिल….” ऑरव ने पूछना चाहा लेकिन फोन कट चुका था।
ऑरव, भव्या को कब से जानता था, उसे याद भी नहीं। बस एक रोज एक फोन इसी तरह आया था, दूसरी ओर से एक मीठी आवाज ने उसकी कविता की तारीफ़ की थी जो उसने शौकिया लिखकर किसी पत्रिका को दे दिया था। तब से जाने कैसे यह फोन उसकी जरूरत बन गया…
शाम में ऑरव का फोन बजा। उसने झटके से फोन उठाया। दूसरी तरफ भव्या ही थी।
“कैसे हो”
“हम कैसे होंगे… तुम कहो न” ऑरव ने उदासी से कहा।
“तुम ठीक हो न!” भव्या की आवाज में परेशानी झलक उठी।
“हाँ… पर तुम परेशान क्यों हो रही।” उस ओर बस खामोशी थी।
“नहीं बस… मैं परेशानी नहीं” फिर से खामोशी पसर गयी।
“भव्या…” ऑरव ने अपनी आवाज को लड़खड़ाने से रोका।
दूसरी ओर से कोई जवाब नहीं आया। ऑरव ने आगे कहा “हम मिल तो सकते हैं न, एक बार ही सही…”
दूसरी तरफ खामोशी ही रही फिर कुछ पल बाद; “ऑरव, मैं जानती हूं, हम लम्बे समय से बात कर रहे और फिर तुम मुझ… नहीं! मिलकर बात करते हैं। हम मिल सकते हैं। दो दिन बाद, रविवार को शाम तीन बजे…” भव्या ने टुकड़ो में कई बातें कहीं। ऑरव के माथे पर शिकन उभर आये।
“कहाँ पर…”
“जहाँ पर तुमने अपनी पहली कविता लिखी थी” फोन कट गया। ऑरव कुछ देर तक फोन अपने कान पर लगाये रहा और फिर रखकर बाहर चला गया।
दो दिन में भव्या ने कोई फोन नहीं किया। ऑरव ने कभी उसे खुद फोन नहीं किया था। वह हमेशा खुद ही करती थी… हर रोज।
“तुम समझ जाना… ग़र…” ऑरव फोन को देखते हुये मुस्कुराया।
दो दिन बाद ठीक तीन बजे ऑरव चेहरे पर हमेशा की तरह सर्दियों को ओढ़े समंदर के उस किनारे पर खड़ा था जहाँ उसने अपनी पहली कविता लिखी थी। वह समंदर को निहारता रहा, लहरें आती और उसके पैरों को छूती हुई लौट जातीं। वह भावशून्य खड़ा था।
“समंदर कितना गहरा होता है, कितना शांत… समंदर ही तुम हो” ऑरव ने अपने पहलू से आयी आवाज की ओर देखा।
माथे पर बिंदी, करीने से बनाये बाल, नाक में लौंग, कान में बाली और माथे पर…. सिन्दूर।
ऑरव इस आवाज पर यकीन करके भी नहीं करना चाहता था पर उसने धीरे से कहा “बैठो…” और खुद बैठ गया।
समंदर चुपचाप शोर करता रहा। दोनों शोर लिये चुपचाप बैठ रहे। सूरज समंदर की ओर बढ़ चला।
“मैं जानती हूं, तुम्हे मुझसे लगाव है…” भव्या ने समंदर को दूर तक देखते हुये कहा।
“उसे प्रेम कहते हैं।” ऑरव ने गहरी सांस ली। उसके सामने डूबता सूरज था।
“मेरी जिन्दगी में इसकी कोई जगह नहीं है। जब फैसला करना था तब किया नहीं, अब करना चाहूं तो कर नहीं सकती हूं…” भव्या चुप हो गयी। ऑरव ने महसूस किया उसके आंसू रेत में खो गये।
“प्रेम में चाह नहीं होता भव्या… बस काश होता है।”
“हाँ; काश कि मैं तुम्हे पहले कह पाती, काश कि तुम मुझे सुन पाते…”
“आज सुन सकते हैं तुम्हे। तुम कहो न…” अपने भीतर के सैलाब को आँखो में उतरने से ऑरव ने रोक दिया।
“हाँ; तुम सुनोगे… मैं कहूंगी अपनी जिन्दगी के हर हिस्से को मगर आज नहीं। हाँ; बस इतना जान लो, मैं काॅलेज पढ़ाने जाती हूं, पढ़ने नहीं” भव्या ने मुस्कुराकर कहा और आंसू फिर से रेत पर टपके, सूख गये।
ऑरव ने उसकी ओर देखा। उसके सामने वह थी, जो उससे कहीं बड़ी थी और उसका प्रेम थी, जिसे वह कह नहीं सकता था, वह समझती थी पर जता नहीं सकती थी।
“तुम्हारी कविताओं की वह काल्पनिक नायिका कौन है ऑरव” भव्या ने रेत पर अपने पैरों के निशान छोड़ते पूछा।
अपने कदमों के साथ आगे बढ़ते हुये वह बस इतना ही कह पाया “तुम खूबसूरत हो… भव्या।”
“ये काला रंग भला खूबसूरत कब होने लगा और क्यों…” भव्या ने जैसे अपने ही शब्दों का उपहास उड़ाया और ठहर गयी। ऑरव ने उसका हाथ पकड़ रखा था।
“रंग आँखो में होता है भव्या…”
एक पल को वहाँ नीरवता फैल गयी। हवा दोनों को सहलाती आगे बढ़ गयी थी।
“तुम्हारी उम्र कितनी है?” भव्या की ऊँगलियाँ ऑरव के चेहरे से फिसलती गयीं।
“जितनी प्रेम की होती है…” ऑरव ने उसका हाथ छोड़ दिया।
समंदर का शोर ऑरव के भीतर पल रही खामोशी से कम ही था। वह जा चुकी थी।
कुछ महीनों बाद ऑरव को एक ख़त मिला। एक कविता की कुछ पंक्तियाँ लिखी थी;
“इस फूल के बिस्तर पर मसली जाती हूं हर रोज
तुम होते तो क्या प्रेम यही होता!
काश कि होते तुम,
सुहाग मेरे हिस्से का
मिलन की एक आस में जीती जाती हूं हर रोज
इस फूल के बिस्तर पर मसली जाती हूं हर रोज…”
ये ऑरव की लिखी पहली कविता थी बाकी पूरा पन्ना खाली था, बस नीचे कोने पर लिखा था -भव्या।
ऑरव ने अपनी कलम उठायी और उसके पहले लिखा; तुम्हारी…
लेकिन आंसूओ की बूंदो ने स्याही को मिटा दिया। ❤
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