नमस्कार दोस्तों आज हम आपके लिए मैं तस्वीर से मिलने नहीं जाऊंगी, Heart Touching Family Story in Hindi, Hindi Emotional Family Kahani, Best Family Story in Hindi लेकर आये हैं हमें आशा है कि ये कहानी आपके दिल को छू जाएगी
मैं तस्वीर से मिलने नहीं जाऊंगी। Heart Touching Family Story in Hindi
कहानी – मैं तस्वीर से मिलने नहीं जाऊंगी: बहू, “तुम्हारी दादी का देहांत हो गया है, परसों तीये की बैठक है,तुम आज ही रवाना हो जाओं ताकि यहां आकर दादी को श्रद्धांजलि दे सकोगी।”सासू मां के मुंह से ये सुनकर मीना फफक-फफक कर रो पड़ी, आंसू है कि थमते ही नहीं थे, बचपन से जिस दादी के इतने साथ रही आज वो नहीं है,ये सोच के ही मीना का दिल भर आया और आंसू बहने लगे।”
मीना के पति राजीव को पता लगा तो उसने कहा मैं तुम्हारा तत्काल में टिकट बनवा देता हूं । “नहीं!!!..राजीव, मैं तस्वीर से मिलने नहीं जाऊंगी, वहां उठावणी में दादी की तस्वीर होगी दादी तो नहीं होगी। आज जब दादी ही नहीं रही तो मैं चाचाजी के घर जाकर क्या करूंगी? और किस हक से जाऊंगी? जब तक दादी जिंदा थी मैं मिल नहीं पाई,मिलने को इतना तरसी, इतनी सामाजिक बंदिशें मैंने झेली अब सिर्फ दुनिया को दिखाने के लिए नहीं जाऊंगी, मैं नहीं मानती ये खोखले रिवाज और बंदिशें ये कहकर मीना ने फोन रख दिया।”
मीना के सामने पुराने दिनों की यादें ताजा हो गईं। मीना के पापा और चाचाजी दोनों अलग-अलग शहर में रहते थे।
दादा-दादी अलग गांव में रहते थे,बचपन में मीना गांव छुटि्टयों में जाया करती थी,अपनी दादी के सबसे करीब रही, दादी ही उसके बाल बनाती, बालों में मालिश करती, उसके लिए कपड़े की गुड़िया बनाती थी,उसकी पसंद का मीठा गुड़ वाला हलवा और चावल की खीर बनाती थी, वो दादी की गोद में सोई रहती थी, दादी उसे कहानियां सुनाया करती थी।
जब मीना शहर वापस आती तो उसका मन नहीं लगता था, उसका गांव जाने का बड़ा मन करता था पर स्कूल की पढ़ाई भी जरूरी थी। जब कभी दादी-दादा के साथ शहर कुछ दिनों के लिए आती तो मीना दादी के चारों तरफ घूमती थी, दादी के खाने-पीने आराम का ख्याल रखती थी, दादी के लिए एकादशी की कथा और गीता का पाठ करती थी।
दादी से मीना का बड़ा जुड़ाव था। एक दिन पता चला दादाजी को लकवा आ गया। उन्हें शहर इलाज के लिए लाया गया पर वो बच ना सके। अब दादी अकेली रह गई, दादी का गांव छूट गया। दादी उदास रहने लगी, वो दादाजी को बहुत याद करती थी पर धीरे-धीरे जीवन सामान्य होने लगा।
दादी बड़ी ही धार्मिक और शांत स्वभाव की महिला थी,अपने नाम मीठी देवी के अनुरूप मीठी थी, सबके साथ घुल-मिल जाती थी, उन्हें भजन गाने का बड़ा शौक था।
मीना के घर से मंदिर बड़ा दूर था। वहां कभी-कभी पापा लेकर जाते थे या मीना, लेकिन रोज जाना संभव नहीं था।
मीना के घर में दादी का मन कम लगता था क्योंकि उस शहर में किसी रिश्तेदार और ज्यादा लोगों का आना-जाना नहीं था। दादी थोड़े ही दिन बड़े बेटे के घर रहती फिर छोटे बेटे के यहां रहने चली जाती।
दादी का वहां बड़ा मन लगता था,घर के सामने ही मंदिर था, पार्क में रौनक थी, रिश्तेदारों के यहां आना-जाना लगा रहता था, बुआ भी चाचाजी की कॉलोनी में ही रहती थी , वो दादी से मिलने आया करती थी। इधर पापा और चाचाजी के बीच गांव के मकान को लेकर बड़ा झगड़ा चल रहा था। चाचाजी गांव का मकान खुद ही हड़प लेना चाहते थे जबकि उसमें पापा की भी हिस्सेदारी थी।
चाचाजी का कहना था,” मां हमारे पास ही रहती है तो उनका सब कुछ हमें ही मिलना चाहिए,इधर पापा ने भी दादी की हर इच्छा पूरी की थी,वो दादी को रखने को तैयार थे पर दादी का मन चाचाजी के यहां ही लगता था। चाचाजी को अकेले दादी का बोझ उठाना नहीं पड़े तो चाचाजी ने हर महीने दादी के ऊपर ख़र्च में आधी रकम पापा से मांगनी शुरू कर दी।
पापा और चाचाजी के स्टेटस में रात -दिन का अंतर था,पापा सामान्य सी नौकरी कर रहे थे, उन्हें अपनी तीनों बेटियों का ब्याह भी करना था साथ ही किराये का मकान भी था। उधर चाचाजी का अच्छा खासा व्यापार था,खुद का घर था, दोनों बेटे चाचाजी का बराबर कारोबार में हाथ बंटाते थे। घर में नौकर -चाकर थे, पर अकेली दादी पर पैसे खर्च करना उन्हें गवारा नहीं था,उनका कहना था कि मां सबकी है,तो मैं अकेला क्यूं खर्च करूं?
एक दिन अचानक रात को चाचाजी का फोन आया कि कल मां की आंखों का ऑपरेशन है , भाई-साहब बीस हजार रूपए लेकर आ जाना। पापा को चाचाजी बस पैसों के लिए ही फोन करते थे, उसके अलावा चाचाजी और चाची पापा को पूछते तक नहीं थे क्योंकि पापा का स्टेटस इतना ऊंचा ना था।
रिश्ते को नहीं धन को मान-सम्मान मिलता है। रातों रात पापा पैसे उधार लेकर गये, पर खर्च तो कम ही आया है, पापा ने हैरानी जताते हुए कहा। भाई-साहब आप कुछ नहीं समझते, ये तो ऑपरेशन का खर्च पच्चीस हजार है, बाकी बाद की दवाईयों,फल, खाने-पीने का खर्च भी तो हमें बराबर देना है।
चाचाजी के मुंह से ये बात सुनकर पापा चुप हो गये,चाची ने दिनभर खाने के लिए भी नहीं पूछा ना ही घर आने को कहा, पापा ने अस्पताल के बाहर ढ़ाबे पर खाना खाया और वहीं अस्पताल में दादी को संभाला उन्हें छुट्टी मिलते ही अपने घर, शहर आ गए। पापा कुछ ना बोलते हैं, क्योंकि हर जगह पैसा बोलता है। दादी के गांव के सामान और गहनों पर चाचाजी ने एकाधिकार जमा लिया और पापा को कुछ ना दिया। चाचाजी लेने में बराबर के हिमायती थे पर देने के पक्ष में नहीं थे।
सालों ऐसा ही चलता रहा,इधर मीना की शादी हो गई, मीना के पति की नौकरी दूर शहर में लग गई। मीना का ससुराल और चाचाजी का घर एक ही शहर में था पर कभी चाचाजी घर आने को नहीं कहते थे। मीना का दादी से मिलने का बड़ा मन करता था, अब दादी बीमार भी रहने लगी थी। एक दिन मीना ससुराल से दादी के यहां मिलने चली गई,दादी से लिपटकर खूब रोई, उनके हालचाल पूछे , बचपन के दिनों को याद करने लगी। तभी चाची बोली,’ हमने तो तुझे बुलाया नहीं, बहन-बेटी बिना बुलायें मायके नहीं आती है, तेरे ससुराल वालों ने तुझे कैसे भेज दिया?
चाची के इतने अपमानजनक शब्दों ने दिल को चीर दिया। अब मीना जब भी ससुराल जाती, दादी से मिलने की कसक मन में ही रह जाती थी। पापा से ही उनके समाचार लेकर मन को तसल्ली देती रहती थी। एक दिन समाचार मिले कि दादी अपनी आखरी सांसे गिन रही थी, मीना का मन बेचैन हो गया। दोनों शहरों में दूरियां भी बढ़ी थी। जाने का मन बना ही रही थी कि सासू मां का फोन आ गया।
आज जब दादी के निधन की ख़बर सुनी तो एकाएक विश्वास ना कर सकी और मन में ये मलाल रह गया कि वो दादी से मिल भी नहीं सकी। सालों हो गये थे, दादी का चेहरा तक नहीं देखा था।
शाम को राजीव आया तो उसने मीना को समझाया, तुम्हारा जाना जरूरी है….नहीं तो समाज रिश्तेदार क्या कहेंगे?
राजीव मेरा फैसला अटल है, मैंने अपने आंसूओं से दादी को श्रद्धांजलि दे दी है। अब मैं वहां जाकर क्या करूंगी? जीते जी जिससे मिलने को तरसाया मेरे लिए उस घर के दरवाजे बंद थे, अब दादी के जाने के बाद मेरे लिए दरवाजे खुल गये , बहन-बेटी हूं ,अब तेरहवीं तक वहां रहना होगा। ये कैसा रिवाज है? इंसान के जाने के बाद इतने दिनों तक वहां रह सकते हैं और जीते जी मैं दादी से कुछ घंटे भी नहीं मिल सकती थी।
मैं तस्वीर से मिलकर भी क्या कर लूंगी ?जिस दादी के प्यार-दुलार को बरसों तरसती रही वो तो मुझे वहां जाकर नहीं मिलेगा । राजीव ने ढ़ाढस बंधाया,” मैं तुम्हारे साथ हूं,तुम्हारा मन नहीं है तो मत जाना। मीना राजीव के कांधे पर सर रखकर फिर से अपनी दादी की यादों में खो गई।
लेखिका – अर्चना खंडेलवाल ✍
दोस्तों,जीते जी हमें जिनसे मिलने नहीं दिया जाए और उनके जाने के बाद उनकी तस्वीर से मिलने बुलाया जाएं। समाज की ऐसी मानसिकता ऐसे रीति-रिवाज कहां तक उचित है?
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