Life Story of a Prostitute in Hindi | वेश्या के जीवन पर बेहतरीन कहानी

नमस्कार मित्रों आज हम आपके साथ Life Story of a Prostitute in Hindi | वेश्या के जीवन पर बेहतरीन कहानी, फ़ीस की आख़िरी किश्त कहानी साझा करने वाले हैं जो आपको जरुर पसंद आएगी तो आइये कहानी कि शुरुवात करते हैं

Life Story of a Prostitute in Hindi

Life Story of a Prostitute in Hindi | वेश्या के जीवन पर बेहतरीन कहानी

फ़ीस की आख़िरी किश्त कहानी: ” बाहर शाम अपनी पूरी रंगीनी पर उतर चुकी थी । नीचे आने जाने वाली गाड़ियों के हॉर्न , लोगों के तेज आवाज में उछलते जुमले , बाहर बालकनी से आती मोल भाव की आवाज़ें ,शाम की पुरज़ोर जवानी का किस्सा बयाँ कर रही थीं ।

नीचे रमुआ पानवाले ने पूरी आवाज़ पर ” नाथनियाँ ने हाय राम बड़ा दुख दीन्हा ” गाना लगाया हुआ था । प्रेमा ने अपने को संभालते हुए पलंग से पांव नीचे रखा । चक्कर खाती दीवारों को देख कर उसने अपनी आंखें हथेलियों से भींच लीं । कमजोरी से सारा बदन कांप रहा था ।

तख्त के पाए के पास रखी बोतल को उठा कर उसने जैसे तैसे दो घूंट पानी हलक से नीचे उतारा । मंजू टेबल पर शायद कुछ खाने को रख गई थी , हाथ बढ़ा कर उसने उठा कर देखा । अखबार में लिपटे २ मख्खन लगे ब्रेड के टुकड़े थे , दो कौर खा कर उसने वापस अखबार के टुकड़े में लपेट कर उन्हें सिरहाने रख दिया ।

अखबार में शहर में होने वाले सफाई अभियान की खबर चमक रही थी जिसपर सड़कों पर झाड़ू लगती किसी बहुत बड़े घर की बहू की तस्वीर के चेहरे पर मख्खन का निशान उतर आया था ।

हफ्ते से कमरा कितना गंदा पड़ा हुआ था । हफ्ता हो गया इस मुये बुखार को अबकी उतरने का नाम ही नहीं ले रहा । अपने आप को सम्हालते हुए उसने चप्पल में पांव डाला ।

बदन का पोर पोर दुख रहा था , इतना तो मरा कभी धंधे में भी न दुखा । एक टेम था पांच पांच मर्द निपटा देती थी एक दिन में , मज़ाल है चेहरे पर कोई शिकन भी आ जाये , और मर्द भी ऐसे वैसे नहीं साले सारे के सारे बौराये साँड़ । जब भी किसी कमीने का अपनी बीबी से जी न भरता ,आ जाता उसकी देह को रौंदने ।

इन मर्दों की सारी की सारी मर्दांनगी रंडियों के बदन पर चढ़ कर ही साबित होती है ।

बाथरूम में नलके के नीचे बैठते हुए उसने सोचा , अब तो शरीर भी ढलने लगा है , अपने बुढ़ापे का कोई इंतज़ाम नहीं कर पाई है वो अब तक । उसने अपनी हथेलियों में पानी ले कर आंखों पर छींटे मारे । बस ये एक जिम्मेदारी पूरी हो जाये फिर वो अपनी ढलती उम्र का देखेगी ।

पानी की ठंडी धार बहुत सुकून दे रही थी । तौलिये में बालों को लपेटते हुए उसने अपने आप को आईने में देखा । बालों में चांदनी छलकने लगी थी । कल परसों में मिर्ज़ा के पार्लर जा कर इसका भी इंतेज़ाम कराना होगा।

किसी तरह से कुणाल की फीस की आखिरी क़िस्त चली जाए , कुछ तस्सली होगी , लंबी सांस खींचते हुए उसने सोचा । इस हफ्ते रोज़ एक ग्राहक भी लग जाये तो जुगाड़ हो जाएगा । साड़ी को लपेटते हुए उसने सोचा , जिंदगी बीत गई इस शरीर को झोंकते झोंकते ,अब नहीं होता ।

बस कुणाल की नौकरी लग जाये तो चैन की सांस ले थोड़ी सी । कुणाल को कैसे बताएगी अपनी और उसकी सच्चाई , कई बार सोच सोच कर दिल हौल खाने लगता है। देखा जाएगा , बच्चा अच्छा निकल गया है , काम धंधे पर लग जाये , इससे ज्यादा उसे क्या चाहिए ।

चेहरे को मेकअप से पोतते हुए , अपने आप को शीशे में देखते हुए वो मुस्कुरा दी । लोग भी न पैकिंग देख कर कुछ भी खरीद लेते हैं । होंटों को भींचते हुए उसने लिपस्टिक ठीक करी । ब्लाउज में हाथ डाल कर दोनों छातियों को कुछ ऊपर खींचा ।

चल बसंती बिकने को तैयार हो जा । अपने जिस्म का नाम उसने बसंती रखा हुआ था , जिस्म जिसमे दिल होता ही नहीं था । दिल को जाने कबसे उसने जिस्म से अलग कर छोड़ा था , जब जब ये जिस्म अकेला होता दिल उसमे घुल मिल जाता और इशिता कुछ पल जी लेती ।

कमरे का दरवाजा खोल कर उसने कदम बाहर रखा । बरांडे में लाल और हरी लइटों में खड़े बदनो की नुमाइश इतने दिनों बाद उसे अजीब सा सुकून दे रही थीं । जैसे हफ्ते की छुट्टियों के बाद कोई मजदूर अपनी दिहाड़ी पर वापस आया हो । रेलिंग पर थोड़ा झुक कर खड़े होते हुए उसने अपना पल्लू सरक जाने दिया ।

अगले चौराहे पे माता के मंदिर में शाम की आरती शुरू हो गई थी । उसने अपनी आंखे बंद करते हुए दुआ मांगी , इस मां की भी लाज रख लेना ।

सामने से दो ग्राहक निकले थे , उसपर उचटती हुई निगाह डालते हुए। मेहंदी लगे बालों से साफ पता लग रहा था पचास -पचपन की उम्र होगी , गोश्त लेकिन बेटी की उम्र का खोज रहे थे । हलक में बलगम का कोई कतरा अटक गया था , छज्जे से नीचे थूकते हुए उसने मुड़ कर देखा ,दोनो हरामजादे चमकी के कमरे के दरवाजे के अंदर जा रहे थे ।

” अरे , शांता, देख ये दोनों हरामी ,चमकी के कमरे में एकसाथ जा रहे हैं । अठरह साल की बच्ची इन दो दो कुत्तों को एकसाथ न झेल पाएगी । ” उसने दो कमरे दूर खड़ी शांता को आवाज़ लगाते हुए कहा ।

” अरे ओ रंडवे , हफ्ते को पलंग पर क्या पड़ी , तूने अपनी हरामीपन फिर चालू कर दिया । आना तो कल सुबह अपनी दलाली लेने , तेरी गर्मी तो मैं निकलती हूँ । ” रमुआ पानवाले की दुकान पर खड़े भीकू दलाल से चिल्लाते हुए उसने कहा । क्या करेंगी ये बच्चियां उसके बिना । अचानक आये चक्कर से खुद को संभालते संभालते वो नीचे बैठ गई । कमजोरी से आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया था ।

चेहरे पर हवा महसूस करके उसने धीरे से आंखें खोलीं । बगल में स्टूल पर बैठी शांता किसी पुरानी मैगज़ीन से हवा कर रही थी । छुटकी , मुनिया , कमला , सत्तो, सारी की सारी लड़कियां उसके चारों तरफ खड़ी उसे देख रही थी ।
” अरे करम जलियों ,धंधे के समय तुमने यहां मजमा लगाया हुआ है , जिंदा हूँ अभी मरी नहीं हूं । ” उसने उठने की कोशिश करी ।

” लेटी रहो जिजि , मरें हमारे दुश्मन ।” शांता ने उसके माथे पर हाथ रखते हुए कहा ।

” लंबू के लौंडे को सीढ़ियों पर बिठा दिया है , कोई भी ग्राहक सीढ़ियां चढ़ेगा तो वो बता देगा । ” सत्तो ने अपनी आंखें पोंछते हुए कहा ।

” अरे नासपीटी धंधे के टेम छज्जा नंगा पड़ा हुआ है । चलो , चलो अपने अपने धंधे पर लगो । ” त्यौहार का टेम है इन कमीनों की जेबें भरी हुई हैँ और लंगोट भारी । ‘ उसने इशारे से सत्तो को पास बुला कर उसके चेहरे को थपथपाते हुए कहा ।

” चलो ,चलो ,सब की सब निकलो यहां से । ” उसका गला सूख सा रहा था ।

” कोई नहीं , तुम लोग निकलो धंधे पे , मेरा आज का एक निबट चुका है , मैं जिजि के पास रुकती हूँ । ” शांता ने सहारा दे कर पानी का गिलास उसके मुंह से लगाते हुए कहा । ” और देखना चमकी निबट जाए तो इधर भेज देना, इस बच्ची को समझाना बहुत जरूरी है , ऐसे करेगी तो टेम से पहले ही रुंध जाएगी ।

” शांता धीरे धीरे उसका माथा सहला रही थी । बचपन में गांव में जब जब अम्मा का सिर दुखता था वो भी अपनी हथेलियों से उसका मत्था ऐसे ही घंटों सहलाती रहती थी । अब तो अम्मा की सूरत भी बिसरने लगी है।

” अरे मुनिया , जरा लंबू के लौंडे को बोलना दो चाय और बच्चे वाला बिस्कुट का पैकेट पकड़ा देगा , ढाबे पे रहमत चाचा को कहला दे जिजि के लिए पतली खिचड़ी बना देंगे । ” शांता ने स्टूल से उठते हुए कहा ।

” अरे , मुझे बिल्कुल भूख नहीं है । ” वो शांता की बाहँ पकड़ कर बुदबुदाई ।

” तुम तो चुप ही रहो जिज्जी , भूख क्यों मर गई है , देख लिया है हमने । ” उसके तकिये के नीचे से कुणाल की फीस का नोटिस निकालते हुए शांता घुर्राई ।

” ये तुझे कहाँ से मिला । ” इशिता ने नोटिस शांता के हाथ से लेने की कोशिश करते हुए कहा ।

” वहीं जहां तुमने छिपाया था । अब समझ आ रहा है हमें इतने दिनों से इतनी परेशान क्यों रह रही थीं ।”
” नहीं री , ऐसा कुछ नहीं है । “

” अब हमसे तो न खेल करो । पंद्रह साल से जानते हैं तुम्हे , तुम्ही ने हमारे आंसूं पोंछ कर हमें सिखाया था न अब यही हमारी दहलीज़ , यही हमारा आंगन , हम सब ही एक दूसरे की बहू बेटियां , हम ही एक दूसरे की संगी सहेली । जिजि हमारे आंसू तो पोछती रहीं अपने आंसू न देखने दिए । ” शांता की आंखों से सालों बाद आंसुओं का रोका हुआ दरिया , बह निकला था ।

” न शांता न “
” रहने दो जिजि कर दी न आज तुमने वो शरीफ़ों की, अपने परायों वाली बात । जिजि तुमने ही कहा था न हम रंडियों के जिस्म होते हैं दिल नहीं । दिल तो शरीफ़ों की बकौती हैं । जो दिल नहीं तो अपना पराया नहीं , फिर जिज्जी क्यों ……….।” शांता इशिता की गोद में सिर रखके जोर जोर से सुबकने लगी।

दरवाज़े पर रहमत चाचा चाय का कप लिए खड़े थे । ” बिटिया “
” अतसलाम वालेकुम , रहमत चाचा ” दोनो औरतों ने अपने अपने पल्ले से सिर ढकते हुए कहा ।

” वालेकुम अतसलाम , बिटिया याद है २५ साल पहले जब तुझे तेरा पति ही तुझे यहां बेच गया था , तेरे आंसू पोंछते हुए मैंने और बीजी ने तुझे समझाया था , घबरा मत इस गली में सिर्फ जिस्म बेचे जाते है , रिश्ते नहीं । चलो अब दोनों चाय पी लो । अभी खिचड़ी भेजता हूँ । “

” रहमत चाचा कल से बीस दिनों तक हर लड़की अपनी एक एक दिन की कमाई आपके पास जमा करेगी , बीस दिनों में फीस पूरी इकट्ठी हो जाये तो कुणाल को भेज देना ।” शान्ता ने नोटिस का कागज़ रहमत चाचा को पकड़ाते हुए कहा ।

“शान्ता , तुम सबका ये ………”
” न जिजि न तुमने ही तो सिखाया है हम रंडियों के पास वसीयत छोड़ने को कुछ नहीं होता । बहुत हुआ अब तुम अपने ठाकुर जी संभालो हम धंधा संभालती हैं ।” शान्ता ने इशिता की पेशानी पर अपने होंठ रख दिये ।

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