नमस्कार दोस्तों आज के पोस्ट में हम Jisake Ham Mama Hain | शरद जोशी व्यंग्य जिसके हम मामा हैं लेकर आये हैं यह हिन्दी साहित्य की लोकप्रिय विधा ‘व्यंग्य के अन्तर्गत दिया गया है। इसमें आज के राजनीतिज्ञों पर सटीक व्यंग्य किया गया है। तो आइये बिना देरी के पोस्ट को शुरू करते हैं और पढ़ते हैं जिसके हम मामा हैं – Funny Story, jisake ham mama hain story in hindi, जिसके हम मामा हैं, शरद जोशी हिंदी कहानी
Jisake Ham Mama Hain | शरद जोशी व्यंग्य जिसके हम मामा हैं
एक सज्जन वाराणसी पहुँचे। स्टेशन पर उतरे ही थे कि एक लड़का दौड़ता आया।
‘मामाजी! मामाजी’ — लड़के ने लपक कर चरण छुए।
वे पहचाने नहीं, बोले– तुम कौन?’
‘मैं मुन्ना। आप पहचाने नहीं मुझे?’
‘मुन्ना?’ वे सोचने लगे।
‘हाँ, मुन्ना भूल गये आप मामाजी खैर कोई बात नहीं इतने साल भी तो हो गये।’
‘तुम यहाँ कैसे ?’
‘मैं आजकल यहीं हूँ।’
‘अच्छा!’
‘हाँ।’
मामाजी अपने भानजे के साथ वाराणसी घूमने लगे। चलो कोई साथ तो मिला। कभी
इस मन्दिर, कभी उस मन्दिर, फिर पहुँचे गंगा घाट। सोचा नहा लें।
‘मुन्ना नहा लें?’
‘जरूर नहाइए मामाजी। वाराणसी आये हैं और नहायें नहीं, यह कैसे हो सकता है।’
मामाजी ने गंगा में डुबकी लगायी। हर-हर गंगे। बाहर निकले तो सामान गायब, कपड़े गायब, लड़का भी गायब।
‘मुन्ना…… ए मुन्ना।’
मगर मुन्ना वहाँ हो तो मिले। तौलिया लपेट कर खड़े हैं।
‘क्यों भाई साहब, आपने मुन्ना को देखा है?’
‘कौन मुन्ना?’
‘वही जिसके हम मामा हैं।’
‘मैं समझा नहीं’
‘अरे हम जिसके मामा हैं वो मुन्ना।’
वे तौलिया लपेटे यहाँ से वहाँ दौड़ते रहो मुन्ना नहीं मिला। भारतीय नागरिक और भारतीय वोटर के नाते हमारी यही स्थिति है मित्रों चुनाव के मौसम में कोई आता है और हमारे चरणों में गिर जाता है। मुझे नहीं पहचाना! मैं इस चुनाव का उम्मीदवारा होनेवाला एम०पी०। मुझे नहीं पहचाना। आप प्रजातन्त्र की गंगा में डुबकी लगाते हैं।
बाहर निकलने पर आप देखते हैं कि वह शख्स जो कल आपके चरण छूता था, आपका वोट लेकर गायब हो गया। वोटों की पूरी पेटी लेकर भाग गया। समस्याओ के घाट पर हम तौलिया लपेटे खड़े हो।
सबसे पूछ रहे हैं। क्यों साहब वह कही आपको नजर आया? अरे वही जिसके हम वोटर हैं। वही जिसके हम मामा हैं। पाँच साल इसी तरह तौलिया लपेटे, घाट पर खड़े बीत जाते हैं।
लेखक: शरद जोशी
Jisake Ham Mama Hain Story in English
ek sajjan vaaraaṇasii pahunche. sṭeshan par utare hii the ki ek ladakaa dowdataa aayaa.
‘maamaajii! maamaajii’ — ladake ne lapak kar charaṇ chhue.
ve pahachaane nahiin, bole– tum kown?’
‘main munnaa. aap pahachaane nahiin mujhe?’
‘munnaa?’ ve sochane lage.
‘haan, munnaa bhuul gaye aap maamaajii khair koii baat nahiin itane saal bhii to ho gaye.’
‘tum yahaan kaise ?’
‘main aajakal yahiin huun.’
‘achchhaa!’
‘haan.’
maamaajii apane bhaanaje ke saath vaaraaṇasii ghuumane lage. chalo koii saath to milaa. kabhii
is mandir, kabhii us mandir, phir pahunche gangaa ghaaṭa. sochaa nahaa len.
‘munnaa nahaa len?’
‘jaruur nahaaie maamaajii. vaaraaṇasii aaye hain owr nahaayen nahiin, yah kaise ho sakataa hai.’
maamaajii ne gangaa men ḍubakii lagaayii. har-har gange. baahar nikale to saamaan gaayab, kapade gaayab, ladakaa bhii gaayaba.
‘munnaa…… e munnaa.’
magar munnaa vahaan ho to mile. towliyaa lapeṭ kar khade hain.
‘kyon bhaaii saahab, aapane munnaa ko dekhaa hai?’
‘kown munnaa?’
‘vahii jisake ham maamaa hain.’
‘main samajhaa nahiin’
‘are ham jisake maamaa hain vo munnaa.’
ve towliyaa lapeṭe yahaan se vahaan dowdate raho munnaa nahiin milaa. bhaaratiiy naagarik owr bhaaratiiy voṭar ke naate hamaarii yahii sthiti hai mitron chunaav ke mowsam men koii aataa hai owr hamaare charaṇon men gir jaataa hai. mujhe nahiin pahachaanaa! main is chunaav kaa ummiidavaaraa honevaalaa ema०pii०. mujhe nahiin pahachaanaa. aap prajaatantr kii gangaa men ḍubakii lagaate hain.
baahar nikalane par aap dekhate hain ki vah shakhs jo kal aapake charaṇ chhuutaa thaa, aapakaa voṭ lekar gaayab ho gayaa. voṭon kii puurii peṭii lekar bhaag gayaa. samasyaao ke ghaaṭ par ham towliyaa lapeṭe khade ho.
sabase puuchh rahe hain. kyon saahab vah kahii aapako najar aayaa? are vahii jisake ham voṭar hain. vahii jisake ham maamaa hain. paanch saal isii tarah towliyaa lapeṭe, ghaaṭ par khade biit jaate hain.
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